कहाँ सबात-ए-ग़म-ए-दिल कहाँ सराब-ए-सुकूँ वो ख़ुश-नसीब है मिल जाए जिस को सोज़-ए-दरूँ ख़ुद आप देख लें क्या हाल दिल ज़बाँ से कहूँ अभी तो हैं मिरी आँखों में चंद क़तरा-ए-ख़ूँ ये शहर-ए-हम-नफ़साँ कितनी बार उजड़ा है कभी न हो सका लेकिन सर-ए-हयात निगूँ अभी तो मस्लहत-ए-वक़्त ही पे नाज़ाँ है अभी ख़िरद को मयस्सर कहाँ मक़ाम-ए-जुनूँ निगाह नीची किए मुन्फ़इल से बैठे हैं अब उन से शिकवा-ए-बेदाद किस ज़बाँ से करूँ निखार आ ही गया ख़ुश्क ख़ुश्क चेहरों पर मिला तो गिर्या-ए-शबनम से कुछ गुलों को सुकूँ दर-अस्ल है मिरी हस्ती की काएनात 'एजाज़' वो इक निगाह जिसे ज़िंदगी का राज़ कहूँ