अक्सर दयार-ए-इश्क़ से हो कर गुज़र गए हँस कर गुज़र गए कभी रो कर गुज़र गए खटकी निगाह-ए-शौक़ में गुलशन की ख़ारगी हम चाक-ए-दिल को ग़म से पिरो कर गुज़र गए पतवार टूटने का हुआ रंज इस क़दर हम नाव तुंद-रौ में डुबो कर गुज़र गए बख़्शी है अह्द-ए-लुत्फ़ ने रातों की तीरगी दिन हुस्न-ए-ए'तिबार में सो कर गुज़र गए मंज़िल से क्या पता कि निकल आए दूर हम होश-ओ-हवास राह में खो कर गुज़र गए गुज़री जो उन पे शाक़ तही-दामनी मिरी आँचल को आँसूओं में भिगो कर गुज़र गए 'राज़ी' को ग़म है मेरे लिए कुछ न कर सके ये भी तो कम नहीं है कि जो कर गुज़र गए