अक्स-ए-ख़याल-ए-यार सँवारा करेंगे हम शीशे में आइने को उतारा करेंगे हम सहरा में ए'तिमाद के गुम-सुम समाअतें कुछ लोग कह रहे थे पुकारा करेंगे हम गर्दन कटी है हाथ भी शानों से कट गए क़ातिल की सम्त कैसे इशारा करेंगे हम मेरे ख़िलाफ़ वो भी समुंदर से मिल गए दरिया तो कह रहे थे किनारा करेंगे हम चादर से जब न छुप सका सुकड़ा हुआ बदन खुल कर अब अपने पाँव पसारा करेंगे हम साँसों की तरह ये भी हैं जीने को लाज़मी चोटें जो दब चुकी हैं उभारा करेंगे हम 'अख़्तर' हों जब सितारे सभी आसमान पर फिर क्यूँ किसी ज़मीं पे गुज़ारा करेंगे हम