अलम का बोझ उठाए सफ़र में रहता है जो बद-नसीब मिरी चश्म-ए-तर में रहता है वफ़ा की भीक कोई ज़र-परस्त क्या देगा कसीर फ़ाएदा उस की नज़र में रहता है तलाश-ए-राहत-ए-दुनिया से क्या ग़रज़ मुझ को अमीन-ए-ग़म हूँ यही मेरे घर में रहता है मिली मुझे इसी गर्दिश में अज़्म की दौलत सफ़ीना मेरा हमेशा भँवर में रहता है मैं जानता हूँ कि अंजाम-ए-ज़िंदगी क्या है हरीस उलझा हुआ माल-ओ-ज़र में रहता है मुनाफ़िक़त के अमल में कमाल है इतना वो कुछ न हो के भी अक्सर ख़बर में रहता है सदाक़तों से मुज़य्यन ख़याल है 'साहिल' मुशाहिदा तिरे अर्ज़-ए-हुनर में रहता है