अलम-ब-दस्त कहीं आइना-ब-कफ़ हूँ मैं तिरे ख़िलाफ़ हर इक सम्त सफ़-ब-सफ़ हूँ मैं मुझे तलाश न कर तू कि इक ज़माना हुआ किताब-ए-इश्क़ के हर बाब से हज़फ़ हूँ मैं हज़ार भेस बदलता रहूँ मगर इस पार किसी चमकती हुई आँख का हदफ़ हूँ मैं बदलता रहता हूँ हर लम्हा अपने ख़द-ओ-ख़ाल कहीं गुहर कहीं दरिया कहीं सदफ़ हूँ मैं डटा हुआ हूँ अभी तक महाज़ पर 'शहज़ाद' अगरचे हारे हुए शाह की तरफ़ हूँ मैं