अलबेली कामनी कि नशीली घड़ी है शाम सर मस्तियों की सेज पे नंगी पड़ी है शाम बेकल किए है रैन के रसिया का इंतिज़ार ग़मगीं है हुस्न-ए-शोख़ कि हैराँ खड़ी है शाम चमका दिया है इस के शरारों ने फ़िक्र को एहसास-ए-इशक़-ओ-हुस्न की इक फुलजड़ी है शाम ताबाँ है तेरा चेहरा कि है जल्वा-ए-सहर रख़्शाँ है तेरी माँग कि तारों जड़ी है शाम रूठे हुए दिलों को भी इस ने मना लिया मन-मोहनी है कामनी चंचल बड़ी है शाम जाने कब आए आज सा हंगाम-ए-दिल-नवाज़ यारो उठाओ जाम घड़ी दो घड़ी है शाम