सूरज किरन के सीने में जैसे सजा हुआ ऐसे ही नाम आप का दिल पर लिखा हुआ लहरें ख़ुशी की उठती रहेंगी कभी कभी गर दिल में है सुकूँ का समुंदर बसा हुआ तोड़ा उसे तो एक क़यामत बपा हुई ज़र्रे में आफ़्ताब था जैसे छुपा हुआ बस इक तिरी निगाह निगाहों से क्या मिली सूखा हुआ था नख़्ल-ए-तमन्ना हरा हुआ हर अक़्ल है असीर-ए-अक़ीदत बनी हुई और दिल तो है सरापा अक़ीदा बना हुआ ऐ बादबान-ए-इश्क़-ए-बुताँ ले चला कहाँ टूटी ये दिल की नाव है दरिया रुका हुआ कहने को उम्र भर थी गुज़ारी जहान में लगता है दो घड़ी में फ़साना हवा हुआ माँगे के चंद रोज़ थे लो ख़त्म हो गए यूँ ज़िंदगी का क़र्ज़ 'हिदायत' अदा हुआ