अल्फ़ाज़ गुफ़्तुगू के लिए अब नहीं रहे महसूस हो रहा है मिरे लब नहीं रहे माना कि फ़ासले हैं बहुत फिर भी ये बता हम तेरे साथ साथ भला कब नहीं रहे कुछ देर गुफ़्तुगू में तो शाइस्ता वो रहा फिर यूँ हुआ कि हम भी मोहज़्ज़ब नहीं रहे तेशे से कोई दूध की नहरें निकाल दे हाथों में अब वो इश्क़ के कर्तब नहीं रहे हाथों को उस की फ़त्ह की ख़ातिर उठा दिया देखा कि उस के तीर-ओ-कमाँ जब नहीं रहे