बुर्रिश-ए-तेग़ भी है फूल की महकार भी है वो ख़मोशी कि जो सद मौजिब-ए-इज़हार भी है छोड़िए उन के शब-ओ-रोज़ की रूदाद-ए-ज़ुबूँ आप को ख़ाक-नशीनों से सरोकार भी है मस्लहत मुझ को भी मलहूज़ है ऐ हम-सुख़नो पर मिरे पेश-ए-नज़र वक़्त की रफ़्तार भी है मौत के ख़ौफ़ से हर साँस रुकी जाती है ज़िंदगी आज कोई तेरा ख़रीदार भी है तल्ख़ी-ए-हाल को है इशरत-ए-फ़र्दा का फ़रेब दिल जुनूँ-कोश है और अक़्ल तरहदार भी है मेरे महबूब मुझे वक़्फ़-ए-तग़ाफ़ुल न समझ ज़ीस्त के लाख तक़ाज़े हैं तेरा प्यार भी है अहल-ए-गुफ़्तार की तो भीड़ लगी है 'अख़्तर' देखना इन में कोई साहब-ए-किरदार भी है