अल्फ़ाज़ की ज़ंजीरों में जकड़े हुए मफ़्हूम अफ़्कार में मरबूत ख़यालात हैं मंज़ूम इस दौर-ए-पुर-आशोब के अंदाज़ तो देखो अरबाब-ए-ख़िरद अहल-ए-जुनूँ दोनों हैं मग़्मूम ये शहर ये तन्हाई ये वीराना-ए-तहज़ीब मे'यार-ए-तमद्दुन का तसव्वुर हुआ मा'दूम कुछ लोग परेशाँ थे हुए और परेशाँ अख़बार की ख़बरों से मची शहर में वो धूम ये ज़ाविया-ए-फ़िक्र है दिलचस्प सियासत सुल्तानी-ए-जम्हूर में क्या ख़ादिम-ओ-मख़दूम