नाकाम-ए-तमन्ना की अफ़्सुर्दा-दिली होगी जब कुछ भी नहीं होगा आख़िर ये घड़ी होगी गुमनाम कोई दस्तक दरवाज़ा-ए-दिल पर है इक याद को आना था शायद ये वही होगी दोपहर की ख़ामोशी दीवार पे गिरती धूप इक रूह उदासी को फिर ढूँढ रही होगी जब तेज़ हुई बारिश वो छत पे चला आया इक शख़्स को ऐसे में रोने की पड़ी होगी तुम सोच भी सकती हो दौरान-ए-विसाल-ए-यार इक शख़्स को फ़ुर्क़त की ख़्वाहिश भी हुई होगी पहलू में तिरे आ कर दिल और फ़सुर्दा है ऐ दोस्त गुमाँ ये था दो-बाला ख़ुशी होगी इक उम्र की बे-कारी हर काम से मुश्किल है इस दौर में फ़ुर्सत भी मेहनत से कड़ी होगी बे-फ़िक्र रहो यारो मैं आज भी हूँ बर्बाद दिन फिर गए हैं मेरे अफ़्वाह उड़ी होगी शाइ'र की रिफ़ाक़त से महफ़ूज़ रखो ख़ुद को उस ज़ात की सोहबत में अच्छी भी बुरी होगी