तअ'ल्लुक़ात की गर्मी न ए'तिबार की धूप झुलस रही है ज़माने को इंतिशार की धूप ग़म-ए-हयात के साए मुहीब हैं वर्ना किसे पसंद नहीं है ख़याल-ए-यार की धूप अभी से अम्न की ठंडक तलाश करते हो अभी तो चमकी है यारो सलीब-ओ-दार की धूप अलम की राहगुज़र पर बहुत ही काम आईं तुम्हारी याद की शमएँ हमारे प्यार की धूप कमंद डाल दें सूरज पे आओ मिल-जुल कर अब और तेज़ न होने दें रोज़गार की धूप लबों पे मोहर जिगर ख़ूँ-चकाँ नज़र हैराँ अब और कैसे जलाएगी ये बहार की धूप तुम्हारे शहर की शैदा-ब-दस्त यादों को तलाश करती रही दिल के कोहसार की धूप बहुत क़रीब हैं साए हयात-ए-नौ के 'उमीद' बहुत ही जल्द ढलेगी अब इंतिज़ार की धूप