शम्अ' का मय का शफ़क़-ज़ार का गुलज़ार का रंग सब हैं और सब से जुदा है लब-ए-दीदार का रंग अक्स-ए-साक़ी से चमक उट्ठी है साग़र की जबीं और कुछ तेज़ हुआ बादा-ए-गुलनार का रंग शैख़ में हिम्मत-ए-रिन्दान-ए-क़दह-ख़्वार कहाँ एक ही जाम में आशुफ़्ता है दस्तार का रंग उन के आने को छुपाऊँ तो छुपाऊँ क्यूँ कर बदला बदला सा है मेरे दर-ओ-दीवार का रंग शफ़क़-ए-सुब्ह-ए-शहादत से है ताबिंदा जबीं वर्ना आलूदा-ए-ख़ूँ था उफ़ुक़-ए-दार का रंग आफ़्ताबों की तरह जागी है इंसान की जोत जगमगाता है सिरा पर्दा-ए-असरार का रंग वक़्त की रूह मुनव्वर है नवा से मेरी अस्र-ए-नौ में है मिरी शोख़ी-ए-अफ़्कार का रंग