अली-बिन-मुत्तक़ी रोया वही चुप था वही रोया अजब आशोब-ए-इरफ़ाँ में फ़ज़ा गुम भी कि जी रोया यक़ीं मिस्मार मौसम का खंडर ख़ुद से तही रोया अज़ाँ ज़ीना उतर आई सुकूत-ए-बातिनी रोया ख़ला हर ज़ात के अंदर सुना जिस ने वही रोया नदी पानी बहुत रोई अक़ीदा रौशनी रोया सहर-दम कौन रोता है अली-बिन-मुत्तक़ी रोया