कोई बताए कि ये रंग-ए-दोस्ती क्या है वो शख़्स पूछ रहा है कि दिलबरी क्या है गए दिनों के तबस्सुम की राख बिखरी है हवा-ए-शहर मिरे दिल में ढूँढती क्या है फ़सील-ए-जिस्म पे तानी है कर्ब की चादर हम अहल-ए-दर्द से पूछो कि ज़िंदगी क्या है सितम की लहर चली आ मुझे गले से लगा मिरे वजूद के आँगन में सोचती क्या है वो धड़कनों के तलातुम से आश्ना ही नहीं उसे ख़बर ही नहीं है कि शाइ'री क्या है जो मह-वशों की जबीनों से फूटती है 'नियाज़' परख सको तो परख लो वो रौशनी क्या है