वुसअ'त है तिरे ज़ेहन में तो ताज-महल रख ये ताज-महल मेरा है ले मेरी ग़ज़ल रख ये क़ौल बुज़ुर्गों का है मत हँस के इसे टाल बच्चों की रकाबी में सदा प्यार का फल रख आता है हर इक साल तिरे गाँव में सैलाब पलकों पे मिरे यार न सपनों का महल रख ठोकर से बचाना है अगर अपनी अना को दिल में न सही अपने लबों पर तू कँवल रख मत देख 'अलीम' अहल-ए-अदावत की सफ़ों को लड़ना है तो फिर अपने इरादे को अटल रख