एहसान एक मुझ पे ये कर जाना चाहिए उन को मोहब्बतों से मुकर जाना चाहिए आशिक़ कोई सितम ये भला कब तलक सहे ज़ुल्फ़ों को ख़ुद-बख़ुद ही सँवर जाना चाहिए देखो ज़माना पहले से कितना बदल गया अब ज़ाहिदो तुम्हें भी सुधर जाना चाहिए लश्कर तमाम मद्द-ए-मुक़ाबिल में एक के दुश्मन को मेरे शर्म से मर जाना चाहिए हिजरत सही नहीं है अगर हाकिम-ए-वतन बे-घर को फिर बता कि किधर जाना चाहिए आख़िर मुझे भी होने लगा जान का ख़याल शीराज़ा सारा मेरा बिखर जाना चाहिए