अम्न की कर ख़ैरात अता मेरे मौला जंग-ओ-जदल को दूर हटा मेरे मौला अब के बरस तो शाख़ों पे फल-फूल खिलें धरती को गुलज़ार बना मेरे मौला नफ़रत और तअ'स्सुब की इस नगरी में चाहत का बाज़ार सजा मेरे मौला हम को इस बारूद के अहद में ज़िंदा रख ऐसा कोई खेल रचा मेरे मौला तारीकी से रौशनियों की मंज़िल तक क़र्या क़र्या दीप जला मेरे मौला तूफ़ानों में हाथ हिलाने वालों को साहिल पे इक बार बुला मेरे मौला