अंदाज़ किसी का है सदा और किसी की है चोट कोई और दवा और किसी की तब्दील-शुदा शख़्स नज़र आने लगा वो तेवर में सजा कर के अदा और किसी की इक शोख़ से सैराब नज़र होने लगी है क़ाबिज़ है मगर दिल पे हया और किसी की रहता था गुरेज़ाँ जो सदा मेरी वफ़ा से ढूँडे है वही आज वफ़ा और किसी की ख़ामोश फ़ज़ा थामे रहा वो मिरे हक़ में मैं ले के चला आया दुआ और किसी की तूफ़ाँ में चमन अपने परेशाँ तो बहुत था आसूदा नहीं पा के सबा और किसी की लिखा ही नहीं जुर्म मिरे नाम के आगे हूँ पा के बहुत ख़ुश मैं सज़ा और किसी की है ख़ूब दरख़्शाँ सा नए शहर में आ कर चिपका के बदन पर वो ज़िया और किसी की ऐ 'साहनी' क्यूँ ऐसा हुआ मुझ को बताना रौशन है तिरे घर में फ़ज़ा और किसी की