हज़ार ख़ाक के ज़र्रों में मिल गया हूँ मैं मआल-ए-शौक़ हूँ आईना-ए-वफ़ा हूँ मैं कहाँ ये वुसअत-ए-जल्वा कहाँ ये दीदा-ए-तंग कभी तुझे कभी अपने को देखता हूँ मैं शहीद-ए-इश्क़ के जल्वे की इंतिहा ही नहीं हज़ार रंग से आलम में रू-नुमा हूँ मैं मिरा वजूद हक़ीक़त मिरा अदम धोका फ़ना की शक्ल में सर-चश्मा-ए-बक़ा हूँ मैं है तेरी आँख में पिन्हाँ मिरा वजूद ओ अदम निगाह फेर ले फिर देख क्या से क्या हूँ मैं मिरा वजूद भी था कोई चीज़ क्या मालूम इस ए'तिबार से पहले ही मिट चुका हूँ मैं शुमार किस में करूँ निस्बत-ए-हक़ीक़ी को ख़ुदा नहीं हूँ मगर मज़हर-ए-ख़ुदा हूँ मैं मिरा निशाँ निगह-ए-हक़-नगर पे है मौक़ूफ़ न ख़ुद-शनास हूँ 'हादी' न ख़ुद-नुमा हूँ मैं