अंधे रस्तों पर फैलाऊँ हाथ कहाँ मेरे नसीबों में तारों की रात कहाँ डाली डाली जुगनू और शरारे हैं रेशम के कीड़े की ये औक़ात कहाँ उस से मिलें और सुख-दुख की बातें कर लें इक तरीक़ पे रहते हैं हालात कहाँ रात हुई और नींद जज़ीरे में पहुँची बे-पतवार की कश्ती में ये बात कहाँ पिछ्ला मौसम बे-समरी में बीत गया अगली रुत में हाथ आएँगे पात कहाँ घर जैसे फल फूल कहाँ मिलते हैं 'ख़ुमार' घर सी ने'मत मिलती है दिन रात कहाँ