सज्दों की रस्म-ए-कोहन को होश गँवा के भूल जा संग-ए-दर-ए-हबीब पर सर को झुका के भूल जा इश्क़ को बरक़रार रख दिल को लगा के भूल जा इस से भी मुतमइन न हो उस को भी पा के भूल जा दिल से तड़प जुदा न कर साज़ को बे-सदा न कर दर्द जो हो फ़ुग़ाँ तलब होंठ हिला के भूल जा दर्द उठे उठा करे चोट लगे लगा करे कुछ भी हो तू ब-नाम-ए-दोस्त हँस के हँसा के भूल जा जाम-ब-दस्त-ओ-मय-ब-जाम यूँ ही गुज़ार सुब्ह-ओ-शाम ज़ीस्त की तल्ख़ियाँ मुदाम पी के पिला के भूल जा मंज़िल-ए-इश्क़ से गुज़र बे-ख़ुद-ओ-मस्त-ओ-बे-ख़बर चोट लगे तो उफ़ न कर दिल को दबा के भूल जा गुज़रे हुए ज़माने को याद न कर कभी 'ख़ुमार' और जो याद आ ही जाए अश्क बहा के भूल जा