अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब मुझ दिल-ज़दा को नींद न आई तमाम शब जब मैं शुरू क़िस्सा किया आँखें खोल दीं यानी थी मुझ को चश्म-नुमाई तमाम शब चश्मक चली गई थी सितारों की सुब्ह तक की आसमाँ ने दीदा-दराई तमाम शब बख़्त-ए-सियह ने देर में कल यावरी सी की थी दुश्मनों से उस को लड़ाई तमाम शब बैठे ही गुज़री वादे की शब वो न आ फिरा ईज़ा अजब तरह की उठाई तमाम शब सन्नाहटें से दिल से गुज़र जाएँ सो कहाँ बुलबुल ने गो की नाला-सराई तमाम शब तारे से मेरी पलकों पे क़तरे सरिश्क के देते रहे हैं 'मीर' दिखाई तमाम शब