कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना सारी जवानी आधा महीना दुनिया-ए-दिल की रस्में निराली बे-मौत मरना बे-आस जीना रोका था दम भर लहराता आँसू आ आ गया है दाँतों पसीना वो ऐसे ही हैं जा रे जवानी जो ख़ुद ही बख़्शा वो ख़ुद ही छीना जिस का था वअ'दा वो कल न आई दिन गिनते गुज़रा सारा महीना मुँह पर सफ़ाई और चोर दिल में आईना फेंको पोंछो पसीना बस 'आरज़ू' बस फ़र्दा का वअ'दा बरसों की बातें दो दिन का जीना