अंजाम-ए-इश्क़ माना अक्सर बुरा हुआ है बे-इश्क़ ज़िंदगी का अंजाम क्या हुआ है क्या हाल-ए-दिल सुनाएँ क्या वज्ह-ए-ग़म बताएँ बस ये कि आज-कल वो हम से खिचा हुआ है क्या ज़िक्र गुल-रुख़ों का इस शहर के करें हम हर शख़्स ही यहाँ तो क़ातिल बना हुआ है किस किस से मिल चुके हैं किस किस से अब मिलेंगे इक रोग ज़िंदगी को ये भी लगा हुआ है ऐसी 'ख़लील' आख़िर क्या बात हो गई है आँखें उदास सी हैं चेहरा बुझा हुआ है