क्या हुई मुझ से ख़ता मा'लूम कर क्यों मिली है ये सज़ा मा'लूम कर हो रहा है ज़िक्र उस का हर कहीं क्या शगूफ़ा है नया मा'लूम कर सर-कशी की है हमें आदत बहुत तू हवाओं की दिशा मा'लूम कर चाक दिल है काँपते लब आँख नम मरज़ मेरे की शिफ़ा मा'लूम कर रुक गए बे-साख़्ता मेरे क़दम ये अचानक क्या हुआ मा'लूम कर नीम-शब आवाज़ आती है मुझे कौन देता है सदा मा'लूम कर चंद ही महरूमियों से थक गए एक मुफ़्लिस की दशा मा'लूम कर