अनमोल सही नायाब सही बे-दाम-ओ-दिरम बिक जाते हैं बस प्यार हमारी क़ीमत है मिल जाए तो हम बिक जाते हैं सिक्कों की चमक पे गिरते हुए देखा है शैख़ ओ बरहमन को फिर मेरे खंडर की क़ीमत क्या जब दैर ओ हरम बिक जाते हैं क्या शर्म-ए-ख़ुदी क्या पास-ए-हया ग़ुर्बत की अँधेरी रातों में कितने ही बुतान-ए-ज़ोहरा-जबीं बा-दीदा-ए-नम बिक जाते हैं ये हिर्स-ओ-हवा की मंज़िल है ऐ राह-रवो हुश्यार ज़रा जब हाथ रुपहले बढ़ते हैं रहबर के क़दम बिक जाते हैं वो साहिब-ए-इल्म-ओ-हिकमत हों या पैकर-ए-अक़्ल-ओ-दानाई इक मेरे दिल-ए-नादाँ के सिवा सब तेरी क़सम बिक जाते हैं ये शहर है शहर-ए-ज़रदारी क्या होगा 'शमीम' अंजाम तिरा याँ ज़ेहन ख़रीदा जाता है याँ अहल-ए-क़लम बिक जाते हैं