हर्फ़-ता-हर्फ़ उफ़्ताद की शाइरी दिल की इक शहर-ए-बर्बाद की शाइरी कब समुंदर किनारों का मुहताज है कब दिल मौज-ए-आज़ाद की शाइरी बाँसुरी की मधुर लय से बाहर निकल सुन ज़रा रूह-ए-नाशाद की शाइरी तर्क होती नहीं ऐसी कुछ आदतें फ़िक्र दाद-ए-हवस दाद की शाइरी तौबा तौबा कि रक्खी है फ़ुटपाथ पर 'मीर' साहब से उस्ताद की शाइरी करते करते सिपुर्द-ए-क़लम कर गई मुझ पे जादू परी-ज़ाद की शाइरी चश्म-ए-बाराँ का दुख बाँटना फ़र्ज़ है कुछ करें अब्र की बाद की शाइरी रब्त के दौर में ख़ूब लिखते थे हम बे-सबब बे-मज़ा बाद की शाइरी रात पलकों में 'रख़्शंदा' काटेंगे हम ता-सहर होगी अब याद की शाइरी