'शुऊर' वक़्त पे दिल की दवा हुई होती तो आज फ़िक्र न होती शिफ़ा हुई होती मुरव्वतन भी अगर आप आ गए होते तमानिय्यत हमें बे-इंतिहा हुई होती न जाने कितने बरस हो गए फ़ुग़ाँ करते कभी तो दाद-रसी ऐ ख़ुदा हुई होती न था नसीब में दिल की मुराद बर आना तो काश सब्र की आदत अता हुई होती हमारा हाल तुम्हारी समझ में आ जाता अगर किसी से मोहब्बत ज़रा हुई होती हम अपने-आप से रहते न बे-ख़बर तो भला हमारी सूरत-ए-हालात क्या हुई होती 'शुऊर' आप की आमद से लाख बेहतर था ग़रीब-ख़ाने पे नाज़िल बला हुई होती