जूँ ज़र्रा नहीं एक जगह ख़ाक-नशीं हम ऐ महर-ए-जहाँ-ताब जहाँ तू है वहीं हम शब हल्क़ा-ए-रिन्दाँ में अजब सैर थी साक़ी साग़र को समझते थे मह-ए-हाला-नशीं हम सेते हैं सदा रश्क-ए-अतू-ए-क़लमी देख हर तार-ए-सरिश्क अपने से दामान-ए-ज़मीं हम ऐ रश्क-ए-नसीम-ए-सहरी क्यूँ है मुकद्दर गुलशन में तुझे देखते हैं चीं-ब-जबीं हम बरपा न कहीं कीजे अब शोर-ए-क़यामत वहशत-ज़दा ऐ ख़ाना-ए-ज़ंजीर नहीं हम सर-रिश्ता रह-ए-इश्क़ का अब हाथ लगा है जूँ दाना-ए-तस्बीह न ठहरेंगे कहीं हम ले कर मह-ओ-ख़ुर्शीद की फिर तेग़-ओ-सिपर को ऐ चर्ख़ तुझे जानते हैं बर-सर-ए-कीं हम यक दस्त उठा लेवेंगे इस सफ़्हा-ए-दिल पर नक़्श-ए-क़दम-ए-यार को जूँ नक़्श ओ नगीं हम ईसा-नफ़स अब जल्द पहुँच तू कि हैं तुझ बिन मेहमान कोई दम के दम-ए-बाज़-पसीं हम खो बैठे हैं उस इश्क़ के हाथों से 'नसीर' अब होश-ओ-ख़िरद ओ सब्र-ओ-क़रार ओ दिल-ओ-दीं हम