अपने अहद-ए-वफ़ा को भूल गए तुम तो बिल्कुल ख़ुदा को भूल गए कुछ न पूछ इंतिहा-ए-रंज-ए-फ़िराक़ दर्द पा कर दवा को भूल गए हम ने याद-ए-बुताँ में दम तोड़ा मरते मरते ख़ुदा को भूल गए उन की बातों को याद करता हूँ जो मिरी इल्तिजा को भूल गए दरमियानी तअ'ल्लुक़ात न पूछ इब्तिदा इंतिहा को भूल गए उन से दो दिन भी चाह निभ न सकी 'मुज़्तर'-ए-बे-नवा को भूल गए