अपने बारे में जब भी सोचा है उस का चेहरा नज़र में उभरा है तजरबों ने यही बताया है आदमी शोहरतों का भूका है देखिए तो है कारवाँ वर्ना हर मुसाफ़िर सफ़र में तन्हा है उस के बारे में सोचने वालो देख लो अब ये हाल अपना है कौन बंदिश लगाए ख़ुशबू की इश्क़ फ़ितरत का इक तक़ाज़ा है याद आई है जाने किस किस की लब पे जब ज़िक्र उस का आया है फ़िक्र की तल्ख़ियों में गुम हो कर आदमी बे-सबब भी हँसता है आरज़ूमंद कोई हो तो कहूँ मेरे दिल में भी इक तमन्ना है मेरे चेहरे पे जो लिखा है 'नज़र' ग़ौर से किस ने उस की समझा है