अपने बेगानों में मैं ने फ़र्क़ कुछ पाया नहीं इस लिए लब पर कोई शिकवा कभी लाया नहीं आसमान-ए-दिल पे बादल ग़म का यूँ छाया रहा हाँ मगर आँखों से मैं ने उस को बरसाया नहीं ख़ुश-गवारी का तअस्सुर आ गया चेहरे पे यूँ ज़ख़्म जो दिल पर लगा था वो तो भर पाया नहीं तुम ने ग़ैरों के लिए मुझ से किया जंग-ओ-जदल मेरे इख़लास-ओ-वफ़ा ने तुम को तड़पाया नहीं अपनी महरूमी का मैं क्यूँ कर करूँ शिकवा बता जानता हूँ रात का होता कोई साया नहीं सैर-तन की वादियों की तो किया वो बार बार रूह की गहराइयों में पर उतर पाया नहीं कैसी क़ुर्बत वस्ल क्या और क्या क़रार-ए-जान-ओ-दिल वक़्त ने सब कुछ दिया मैं ने मगर पाया नहीं कैसी उल्फ़त प्यार कैसा और क्या मेहर-ओ-वफ़ा शहर में मेरे तो ऐसी शय कोई लाया नहीं