अपने बोझ से टूट रहा हूँ मैं भी काँच का इक टुकड़ा हूँ कोई कहानी याद नहीं है रद्दी काग़ज़ बेच चुका हूँ ज़ीस्त ने अपने पर फैलाए रेत के सहराओं में खड़ा हूँ अपनी बात कहूँ तो क्यों कर उन की बातों में उलझा हूँ सब मिट्टी के सौदागर हैं जिन के भी हाथों में बिका हूँ मुझ से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ कर लो मैं अंदर से टूट चुका हूँ तुम ही बेचो तुम ही ख़रीदो सूद-ओ-ज़ियाँ से ला-परवा हूँ लाख सँवारो लाख बिगाड़ो वैसा रहूँगा मैं जैसा हूँ नुक़्ता एक हूँ 'ईरज' लेकिन सम्तों में सम्तों में बटा हूँ