अपने चेहरे की ज़िया दे के उजालो मुझ को पुर-सुकूँ जीता हूँ उलझन में ही डालो मुझ को नींद उतरी नहीं आँखों में बड़ी मुद्दत से रेशमी ज़ुल्फ़ के साए में सुला लो मुझ को ढूँड लो पहले ख़ताओं का मिरी कोई सुबूत बे-सबब यूँ तो न महफ़िल से निकालो मुझ को नफ़रतें मेरे तआ'क़ुब में चली आती हैं ऐन मुमकिन है बिखर जाऊँ सँभालो मुझ को मैं ने सर बार लिए वो जो मिरे थे ही नहीं क़ुर्ब इतना सा करो मुझ से चुरा लो मुझ को हाथ है दोस्त कोई कासा गदाई का नहीं थाम लो बढ़ के इसे ऐसे न टालो मुझ को दास्ताँ कोई कथा है न कहानी कोई कुछ उगलने का नहीं जैसे खँगालो मुझ को आज बरसात है बादल है फ़ज़ाएँ महकी गीत हूँ प्यार का होंटों पे सजा लो मुझ को जिस की 'हसरत' थी तुम्हें मैं वो तुम्हारी मंज़िल गर हूँ मेहनत का सिला अपना बना लो मुझ को