अपने दिल में आग लगानी पड़ती है ऐसे भी अब रात बितानी पड़ती है उस की बातें सुन कर ऐसे उठता हूँ जैसे अपनी लाश उठानी पड़ती है वो ख़्वाबों में हाथ छुड़ा कर जाए तो नींदों में आवाज़ लगानी पड़ती है क्या ख़ुशबू से मैं उस की बच पाऊँगा रस्ते में जो रात की रानी पड़ती है अब जा कर के बात समझ में आई है लेकिन अब कमज़ोर जवानी पड़ती है