अपने घर से तो चला था मैं शिकायत ले कर उस के घर पहुँचा मगर उस की मोहब्बत ले कर एक एहसास-ए-जुनूँ मुझ को लिए जाता है लौट आएगा नई फिर कोई वहशत ले कर हिज्र कहते हैं किसे ये मुझे मा'लूम नहीं क्या करूँगा मैं तुझे ऐ शब-ए-फ़ुर्क़त ले कर दिल में रहता है कोई जज़्बा-ए-सादिक़ की तरह कोई आए तो दिखावे की मोहब्बत ले कर मेरा घर है कि फ़रिश्तों का कोई मस्कन है क्या करूँगा मैं किसी और की जन्नत ले कर