अपने हाथों से नशेमन को जलाया हम ने इश्क़ की राख को सीने से लगाया हम ने दर्द की आग को शो'लों से शनासा कर के लज़्ज़त-ए-हिज्र की हिद्दत को छुपाया हम ने रूह की प्यास बुझाने का इरादा बाँधा वादी-ए-इश्क़ में इक फूल खिलाया हम ने एक बे-पर्दा मोहब्बत को समझ कर सच है जब्र को सब्र का हमराज़ बनाया हम ने राह की धूल को राहबर ही समझ बैठे थे आबला-पा थे मगर नाम कमाया हम ने तेरे होंटों के लिए बाग़ की शर्तें मानीं फूल के जिस्म से रंगों को चुराया हम ने दिल की कश्ती को किनारे से लगाया 'किशवर' और फिर इस में मोहब्बत को बिठाया हम ने