जान ले गर तू जान लेता है क्यों मिरा इम्तिहान लेता है क्या बताऊँ मैं अपना हाल-ए-दिल जानता हूँ तू जान लेता है ज़ख़्म ढलते नहीं हैं लफ़्ज़ों में क्यों मिरा तू बयान लेता है देख हमदर्दियों का मरहम रख सुर्ख़ आँखें क्यों तान लेता है दिल को सहला भी थपकियाँ भी दे दिल तो बच्चा है मान लेता है आसमाँ को ज़मीं समझता है जब परिंदा उड़ान लेता है देख कर वार करना पहलू से देखना फिर से जान लेता है क्या जलाएगी आग उस को जो रोज़ दर्स-ए-क़ुरआन लेता है 'शाह' फूलों सा दिल तू रखता है और ख़ुशबू पे जान देता है