अपने हिस्से की ज़मीं भी चाहिए दिल मकाँ को इक मकीं भी चाहिए लड़के वालों की तलब तो देखिए लड़की अफ़सर भी हसीं भी चाहिए उस की बातें याद करते हैं चलो शाम-ए-ग़म कुछ दिल-नशीं भी चाहिए उस की हर दम हाँ घमंडी कर गई उस के मुँह से इक नहीं भी चाहिए दम किराए के मकानों में घुटे घर हो कैसा भी कहीं भी चाहिए हम न हों तो तुम भी बे-मा'नी रहो आस्ताने को जबीं भी चाहिए शे'र तो कुछ 'ताहिरा' ने कह दिए लेकिन उस को आफ़रीं भी चाहिए