अपने जज़्बे निसार मत करते वक़्त का ए'तिबार मत करते दाग़ ज़ख़्मों के अन-गिनत होंगे आबलों का शुमार मत करते दरमियाँ फ़ासलों के सहरा हैं अब मिरा इंतिज़ार मत करते अजनबी देस उड़ गए पंछी अपने बच्चों से प्यार मत करते नफ़रतों के क़िमार-ख़ाने में प्यार का कारोबार मत करते पैर तो पत्थरों के आदी हैं तय कोई सब्ज़ा-ज़ार मत करते इक मिरे जुर्म-ए-बे-गुनाही का तज़्किरा बार बार मत करते ज़ुल्म तारीक इस्तिआ'रा है साहब-ए-इक़्तिदार मत करते 'नूर' इस कूचा-ए-मलामत में एहतिराम-ए-बहार मत करते