अपने पास है एक हवाला मिट्टी का कच्चे घर में ख़ुश्क पियाला मिट्टी का फूल सजे हैं शीशे के गुल-दानों में लेकिन मैं हूँ चाहने वाला मिट्टी का वो दिन भी कुछ दूर नहीं है जब मख़्लूक़ बन जाएगी एक निवाला मिट्टी का मैं ने इक दो अश्क गिराए मिट्टी पर देखा फिर इक रूप निराला मिट्टी का बेच रहा था घर जन्नत में मिट्टी के ऐसा था इक अल्लह वाला मिट्टी का सारी दुनिया देखने आई जब मैं ने अन्दर से दरवेश निकाला मिट्टी का