वो नज़र जब इधर नहीं होती रौशनी मेरे घर नहीं होती हर बयाँ मुस्तनद नहीं होता हर ज़बाँ मो'तबर नहीं होती इश्क़ की राह में किसी की नज़र अपने अंजाम पर नहीं होती थक के हर गाम बैठने वालो ज़िंदगी यूँ बसर नहीं होती जिस दुआ में तड़प न हो दिल की वो रहीन-ए-असर नहीं होती इश्क़ में जाँ से हाथ धोते हैं ये मुहिम यूँ ही सर नहीं होती जो सहर हासिल-ए-शब-ए-ग़म है वो सहर उम्र भर नहीं होती दर्द-ए-दिल यूँ अज़ीज़ है 'साबिर' मिन्नत-ए-चारागर नहीं होती