अपनी क़िस्मत के हुए सारे सितारे पत्थर फूल दामन में तिरे और हमारे पत्थर हम भी ईसा की तरह तुम से यही कहते हैं जो गुनाहगार नहीं है वही मारे पत्थर हक़ न मिल पाए मशक़्क़त का तो होता है यही ज़ुल्म के सामने होते हैं सहारे पत्थर मो'जिज़ा इश्क़ का ये भी है ज़माने वालो मेरे आँगन में हुए फूल तुम्हारे पत्थर दस्त-ए-नफ़रत ने किया पैकर-ए-ईमाँ ज़ख़्मी मुफ़्त में हो गए बदनाम बेचारे पत्थर सोने चाँदी ने तो कुछ भी न दिया हम को 'ज़फ़र' या-ख़ुदा अब मिरी क़िस्मत को सँवारे पत्थर