अपनी लाज सँभाले हैं भई हम तो लड़की वाले हैं भई सुब्ह कमाएँ शाम पकाएँ अपने ठाठ निराले हैं भई मजबूरी है कौन बताए सब के मुँह पर ताले हैं भई फक्कड़ फ़ितरत के मालिक हैं कल को कल पर टाले हैं भई दिल हैं बरछी तीर कटारी चेहरे भोले-भाले हैं भई उन को ये मज़मून लिखा है एक कबूतर पाले हैं भई टूट टूट कर हुए मुकम्मल हम मकड़ी के जाले हैं भई