अपना सर अपनी हथेली पे सँभाले निकले ज़िंदगी यूँ भी तिरे चाहने वाले निकले मशअलें तुंद हवाओं में चले हैं ले कर तेरे उश्शाक़ ज़माने से निराले निकले साथ छोड़ा न रह-ए-शौक़ में आख़िर दम तक कितने दम-साज़ मिरे पाँव के छाले निकले तीरगी ग़म की बढ़ी हद से तो आँसू बन कर दिल के रौज़न से उमीदों के उजाले निकले ख़ूँ-बहा माँगते हम अपना तो किस से आख़िर जितने क़ातिल थे वो सब चाहने वाले निकले पुर्सिश-ए-हाल की उम्मीद थी जिन से 'नातिक़' वो भी होंटों पे लगाए हुए ताले निकले