अपने अंदर भी हम-नवाई नहीं अक़्ल की रूह तक रसाई नहीं सौदा-बाज़ी अगर न हो इस में नेकी करने में कुछ बुराई नहीं हर अदा से अदा निकलती है इतनी आसान आश्नाई नहीं हम से क़ाएम है तेरे हुस्न की शान ये मिरी जान! ख़ुद-सताई नहीं कितना तन्हा हूँ दश्त-ए-ग़ुर्बत में मेरा भाई भी मेरा भाई नहीं किसी उनवान से कभी 'आबिद' ज़िंदगी हम को रास आई नहीं