अपने बीमार-ए-मोहब्बत की दवा बन जाइए दिल दुखाना छोड़ दीजे दिलरुबा बन जाइए क़ौम को गर लूटना है बा-सलीक़ा लूटिए छोड़िए डाका-ज़नी और रहनुमा बन जाइए ज़िंदगी में जो हुआ दे देंगे महशर में जवाब काबतुल्लह जाइए और पारसा बन जाइए आज के मल्लाहों पर कीजे न बिल्कुल ए'तिबार जब भँवर में आए कश्ती नाख़ुदा बन जाइए जो जवानी में हुआ उस को भुला दीजे भला आलम-ए-पीरी है 'मख़फ़ी' पारसा बन जाइए