नक़्श है हर ज़ुल्म जिस का वादी-ए-कश्मीर पर उस ने दहशत-गर्द लिक्खा अम्न की तस्वीर पर काहिली की लग गई दीमक हर इक तदबीर पर इक्तिफ़ा करके वो शायद रह गया तक़दीर पर तेज़ रखना धार अपने हौसले की हर घड़ी मुनहसिर है ज़िंदगी की जंग इस शमशीर पर रख तवाज़ुन कुछ तो वाइज़ तू भी क़ौल-ओ-फ़े'ल में लोग गिरवीदा नहीं होते फ़क़त तक़रीर पर तीन सौ तेरह के जैसे शर्त हैं औसाफ़ भी फ़त्ह ना-मुम्किन है ख़ाली नारा-ए-तकबीर पर कैसे दस्तक दे भला कोई ख़ुशी दर पर मिरे जब ग़मों का साँप आ कर चढ़ गया ज़ंजीर पर खिल उठा हर एक 'दानिश' ग़ुंचा-ए-अहल-ए-सुख़न ख़ून-ए-दिल छिड़का जो हम ने गुलशन-ए-तहरीर पर