अपने गुमान-ए-तर्क-ए-मोहब्बत को क्या हुआ फिर सामने है एक बदन सोचता हुआ ये पैरहन ये ज़ुल्फ़ ये नज़रों की एहतियात हम ख़ुश-नसीब हैं कि तिरा सामना हुआ हम पर तो ख़ैर एक क़यामत गुज़र गई तेरे मिज़ाज से भी जहाँ आश्ना हुआ काकुल-बदोश आज वो सरगर्म-ए-बहस हैं दिल की मुवाफ़क़त में कोई फ़ैसला हुआ ना-पुख़्तगी-ए-इश्क़ के ग़म भी गुज़र गए उस बा-वफ़ा पे आज यक़ीन-ए-वफ़ा हुआ फिर क़त्ल-गह में ज़ीनत-ए-दार-ओ-रसन हुई फिर शरह-ए-आरज़ू का कहीं हौसला हुआ 'सैफ़ी' हमें अज़ीज़ था कुछ इतना राज़-दाँ वो शोख़ ख़ुश-दिमाग़ भी हम से ख़फ़ा हुआ